सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट को फटकारा

By | October 5, 2022

पूछा- जिनके पास पैसे नहीं, क्या उन्हें नहीं मिलेगी जमानत

बड़ी रकम जमा कर आरोपी को जमानत देने के हाईकोर्ट के फैसले पर लताड़ा

कोर्ट ने कहा कि जज ने किस आधार पर जमानत का फैसला किया, यह हमारे समझ से परे

ऐसे सभी मामलों में जमानत को लेकर फिर से सुनवाई का निर्देश

दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि आरोपी के पैसे जमा करने की क्षमता से जमानत नहीं तय की जा सकती है। जमानत को लेकर झारखंड हाई कोर्ट के एक जज के फैसलों पर सवाल उठाते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि जमानत का फैसला अपराध की प्रकृति के आधार पर होता है न कि आरोपी की इस क्षमता पर कि वह कितना पैसा जमा करा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत से जुड़े इस तरह के फैसलों पर हाई कोर्ट को फिर से नए सिरे से सुनवाई का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि जज ने जमानत देने की जो प्रक्रिया अपनाई है वह सही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को जमानत पर फैसला इस आधार पर लेना होता है कि अपराध किस तरह का है, उसकी गंभीरता क्या है, न कि आरोपी की पैसे देने की क्षमता से। झारखंड हाई कोर्ट को फटकार लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की।
दरअसल, झारखंड हाई कोर्ट ने कई आरोपियों को इस शर्त पर जमानत दे दी कि वे अच्छी-खासी रकम जमा कर दे, जबकि अपराध की प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया गया। उन्हें पीड़ित को अंतरिम मुआवजा के रूप में बड़ी रकम जमा करने को कहा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाई कोर्ट के कई ऐसे फैसलों को देखा और कहा कि अदालत के एक सिंगल जज ने जो प्रक्रिया अपनाई है, वह कानून के मुताबिक सही नहीं है। ऐसे ही एक आदेश में हाई कोर्ट ने एक शख्स और उसके मां-बाप को घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न के मामले में प्री-अरेस्ट बेल यानी अग्रिम जमानत दे दी थी। इसके लिए कोर्ट ने 25 हजार रुपये का बॉन्ड भरने और पीड़ित को अंतरिम मुआवजे के तौर पर साढ़े 7 लाख रुपये देने की शर्त रखी। खास बात ये है कि पीड़ित पत्नी के मुताबिक, उसके परिवार ने ससुराल वालों को साढ़े 7 लाख रुपये का दहेज दिया था।

अग्रिम जमानत की याचिका पैसों की रिकवरी वाली प्रक्रिया नहीं


आरोपियों की याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर करते हुए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने जमानत की शर्तों को रद्द कर दिया। बेंच ने कहा कि हाई कोर्ट ने जो प्रक्रिया अपनाई, वह कानून के मुताबिक नहीं है।
बेंच ने कहा कि गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत की याचिका पैसों की रिकवरी वाली प्रक्रिया नहीं है। अगर किसी शख्स को अपनी गिरफ्तारी की आशंका है तो उसे प्री-अरेस्ट बेल के लिए पैसे जमा करना हो, इसका कोई औचित्य नहीं है
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट ने दहेज से लेकर धोखाधड़ी, रेप और पॉक्सो ऐक्ट जैसे अलग-अलग मामलों में भी आरोपियों को इसी तरह से जमानत दी है।
कोर्ट ने कहा कि इन सभी मामलों में एक चीज कॉमन है। एक ही जज ने अपराध की प्रकृति के हिसाब से जमानत की जरूरतों पर सही से विचार किए बिना ही बड़ी रकम जमा करने की शर्त पर जमानतें दी। अगर कोई शख्स बड़ी रकम नहीं जमा कर सकता, उसके पास पैसे नहीं हों तो उन्हें जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यही होता दिख रहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज ने किस आधार पर जमानत का फैसला किया, यह हमारे समझ से परे है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने झारखंड हाई कोर्ट को इस तरह के सभी मामलों में जमानत को लेकर फिर से सुनवाई का निर्देश दिया।

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