गांडीव लाइव
2017 में कैप्टन अमरेंद्र सिंह की बदौलत कांग्रेस ने सत्ता में दुबारा आयी, लेकिन जिस प्रकार से सरकार गठन के बाद से कैप्टन अमरेंद्र सिंह और नवजोत सिंह सिद्धो के बीच तनातनी चलती रही, उसका खमियाजा 2022 के चुनाव परिणाम में देखने को मिल रहा है. जिसकी बदौलत कांग्रेस पंजाब में खड़ी हुई. 2017 में दुबारा सत्ता में आयी, उसे जिस तरह से कांग्रेस ने दरकिनार कर किया उसका साफ असर चुनाव परिणा में देखने को मिल रहा है. इससे साफ प्रतीत हो चुका है कि कांग्रेस आलाकमान द्वारा नवजोत सिंह सिद्धो अधिक तब्बजो देना और कैप्टन अमरेंद्र सिंह को अपमानित करके पार्टी से निकाल-बाहर करने का कदम काफी मंहगा पड़ा है. शुरू से ही यह चर्चा हो रही थी कि किसान आंदोलन का जन्म पंजाब से हुआ ही था. वहां पर भाजपा के खिलाफ अच्छा महौल नहीं है. इसके बावजूद भी कांग्रेस ने के रणनीतिकार इसे समझ नहीं पाए और कैप्टन को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने पर मजबूर कर दिया गया.
सिद्धो के राजनीतिक कैरियर पर लगा प्रश्न चिन्ह
पंजाब में करारी हार के बाद अब खुद सबसे अधिक नुकसान नवजोत सिंह सिद्धो को होगा. पार्टी पंजाब में उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ी. प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी सिद्धो संभाल रहे थे. सीएम चन्नी तो चुनाव के महज छह महीने पहले आए थे. इसलिए उन्हें कोई दोष नहीं दे सकता है. हार का सारा ठीकरा सिद्धो पर ही फुटेगा यह तय है. हो सकता है कि सिद्धो हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे सकते हैं.