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चाय वाले बिहारी रैपर से मिलिए: सिविल इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे थे ये छूटी हुई तो खोला चाय का स्टॉल ; रैप के जरिए उठा रहे बेरोजगारों का दर्द

by Gandiv Live
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पटना में एक चाय की स्टॉल इन दिनों खूब चर्चा में हैं। मुसल्लहपुर इलाके में मेरियो इसे चलाते हैं। 28 साल के मेरियो का चाय बेचने का अंदाज जुदा है। उनकी दुकान पर चाय-कॉफी के साथ रैप के मजे फ्री मिलते हैं। रैप भी एकदम सटायर वाले। फुल कॉन्फिडेंस के साथ। ज्यादातर रैप सॉन्ग में उन तमाम युवाओं का दर्द होता है जो बिहार के अलग-अलग हिस्सों से पटना आए हैं पढ़ने के लिए। इनके स्टॉल पर शाम होते ही मुसल्लहपुर के युवा चाय पीने उमड़ पड़ते हैं और मेरियो उन्हें रैप सुनाते हैं।

शाम में इनकी दुकान का माहौल एकदम रैप शो जैसा हो जाता है। कई बार तो मुसल्लहपुर की सड़क जाम होने लगती है। हमें पता चला तो हम भी पहुंचे उनकी दुकान पर चाय पीने। चाय के साथ रैप भी सुना। दैनिक भास्कर के माध्यम से आप भी सुनिए मेरियो की कहानी उनकी जुबानी…

पहले ऑफिस बॉय का काम करते थे
मेरियो ने रैप सॉन्ग के पीछे एक दर्द भी छिपा रखा है। वे बताते हैं कि पिछले चार महीने से वे सड़क किनारे छोटा सा स्टॉल लगाकर चाय बेच रहे हैं। इससे पहले एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में ऑफिस बॉय का काम करते थे। कमाई 8 हजार रुपए होती थी। पिता की कमाई भी बहुत ज्यादा नहीं है कि उससे घर ठीक से चल सके।

मेरियो बहन गुड़िया को नर्सिंग की तैयारी भी करा रहे हैं । मारियो ने बताया कि वो अपनी मां के साथ दिल्ली में रहते थे। उनकी मां छात्रों के लिए टिफिन सेंटर चलाती थीं। वो उन्हीं के साथ रहकर हरियाणा के बहादुरगंज के एक कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग कर रहे थे। 2 साल तक पढ़ाई करने के बाद घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी, जिसके बाद उन्हें अपनी पढ़ाई अधूरी ही छोड़नी पड़ी। फिर 8 हजार रुपए की नौकरी भी की, लेकिन इसे छोड़कर चाय बेचने का काम शुरू किया।

आम लोगों की बातचीत से उठाते हैं रैप के लिए शब्द, भाव और धार
रैप सॉन्ग गाने का हुनर कहां से ले आए? इस सवाल के जवाब में मेरियो कहते हैं कि मैं बचपन में कहीं भी डांस देखता था तो मेरे कंधे और बॉडी खुद ब खुद एक्शन में आने लगते थे। लोगों ने धीरे-धीरे कहना शुरू किया कि यह तो रैप की तरह करता है। तुम रियलिटी लिखो। बस मैं लिखने लगा।

मेरियो बताते हैं कि आम लोगों की बातचीत में जो बातें सुनते हैं, उसी को रैप में लिखते हैं और गाते हैं। जल्दी ही ये रैप सॉन्ग याद भी हो जाते हैं, सुनाते-सुनाते। कई बार तो चाय बेचते-बेचते ही लिखता रहता हूं। इसलिए डायरी भी हमेशा साथ रखता हूं।

नोटबंदी से लेकर किसानों, बेरोजगारों की दर्द
मेरियो जब आम जनता की बात जब रैप में लिखते हैं तो उसमें नोटबंदी से लेकर किसानों और बेरोजगार युवाओं का दर्द तक आ जाता है। सरकार कठघरे में खड़ी हो जाती है। वे कहते हैं कि वे किसी सरकार या पार्टी की आलोचना नहीं करते, वे तो बस लोगों से सुनी बातों को शब्द देते हैं। शब्दों का चयन वे इस तरह से करते हैं कि रैप में धार आ जाए, बस।

युवाओं को इसलिए भाता है इनका रैप
ऑफिस ब्वाय की 8 हजार की नौकरी छोड़ जब वे रैप सुनाकर चाय बेचने लगे तो लोगों की भीड़ जुटने लगी। मुसल्लहपुर में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए बड़ी संख्या में युवा रहते हैं। ये युवा बड़ी संख्या में हर दिन रैप विद चाय में शामिल होने लगे। युवाओं को उनका रैप सुनना इसलिए अच्छा लगता है कि मेरिया हर युवा का दर्द भी रैप में सुना रहे हैं। मेरिया अब रैप विद चाय से 8 हजार से बहुत ज्यादा कमा ही नहीं रहे, बल्कि अपने घर को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहे हैं। कहते हैं कि बहन पढ़ेगी तो, घर भी बढ़ेगा।

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