बिना फायर डिपार्टमेंट के एनओसी के हर माह ठेकेदारों को हो रहा करोड़ों का भूगतान
रांची। झारखंड भवन निर्माण निगम की देखरेख में राज्य में हर साल लगभग 1000 करोड़ रुपये की बिल्डिंगें बनवायी जा रही है। इनमें सरकारी कार्यालय से लेकर, स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल तक शामिल हैं। इन बिल्डिंगों के निर्माण में झारखंड बिल्डिंग बाइलॉज का सरासर उल्लंघन कर अधिकतर बिल बिना फायर डिपार्टमेंट के एनओसी के धड़ाधड़ पास किया जा रहा है। जिन सिविल इंजीनियरों की देखरेख में ये बिल्डिंग बन रही हैं, उन्हें फायर का नॉलेज नहीं है। ऐसे में यदि भविष्य में कोई हादसा हुआ तो सैकड़ों बेगुनाह मारे जायेंगे।
5000 वर्गफीट से बड़ी बिल्डिंग के लिए एनओसी है अनिवार्य
झारखंड बिल्डिंग बॉयलाज 2016 के अनुसार 5000 वर्गफीट से बड़ी बिल्डिंग के निर्माण में फायर डिपार्टमेंट का एनओसी अनिवार्य है। प्राइवेट बिल्डिंगों पर यह नियम कड़ाई से लागू है। लेकिन, सरकारी बिल्डिंग में जहां सैकड़ों लोग एक साथ जाते हैं, काम करते हैं, वहां सिर्फ ठेकेदारों की सहुलियत के लिए निगम बिना एनओसी पेमेंट कर रहा है।
नौकरी जाने के भय से अनुबंध पर रखे इंजीनियर करते हैं काम
झा रखंड भवन निर्माण निगम में अधिकतर जिलों मे अनुबंध पर रखे गये एक्जक्युटीव इंजीनियर ही हर महीने ठेकेदारों के करोड़ों रुपये के बिल को पास करते हैं। अमूमन 50 से 75 हजार मासिक वेतन पाने वाले ये कम अनुभवी इंजीनियर कहीं गलती से तो कहीं अपनी नौकरी जाने के भय से ठेकेदारों के गलत-फर्जी बिल को पास कर भवन निगम को अग्रसारित करते रहते हैं।
यदि जेएसबीसीसीएल के पिछले एक सालों में पास हुए ठेकेदारों के बिल की सही से आडिट करवा ली जाए, तो सैकड़ों करोड़ के फर्जी भूगतान का पर्दाफाश हो जाएगा और इसके दोषी जूनियर इंजीनियर से लेकर भवन निर्माण निगम के एक्जक्युटीव डायरेक्टर तक को जेल की हवा खानी पड़ेगी।
टाइम एक्सटेंशन और प्राइस एक्सक्लेशन के मद में भी निगम के उच्चाधिकारियों के मौखिक निर्देश पर ये अनुबंध पर कार्यरत इंजीनियर सरकारी खजाने को सैकड़ों करोड़ की चपत लगा रहे हैं। छोटे ठेकेदारों का प्राइस एक्सक्लेशन का बिल तो काट दिया जाता है, लेकिन बड़े ठेकेदार जिनको हर साल करोड़ों का भूगतान होता है, वे इसका लाभ ले रहे हैं।