अन्य जिलों से भी भोजपुरी, मगही, अंगिका व मैथिली को हटाए सरकार : डॉ . लंबोदर महतो

By | February 20, 2022

आदिवासियों, मूलवासियों के जनांदोलन से बैकफुट पर आई सरकार

  • कैबिनेट में मगही, भोजपुरी को समर्थन करनेवाले मंत्री नहीं ले अपना श्रेय
    -सरकार में शामिल लोगों को राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय भाषा में अंतर की समझ नहीं
    -आजसू पार्टी का 7 मार्च को विधानसभा घेराव तय

आजसू पार्टी के केंद्रीय महासचिव सह गोमिया विधायक डॉ. लंबोदर महतो ने कहा है कि राज्य के अन्य जिलों में भी क्षेत्रीय भाषा सूची में शामिल भोजपुरी मगही, अंगिका एवं मैथिली भाषा को हटाया जाना चाहिए। गोमिया विधायक ने कहा कि बोकारो एवं धनबाद जिले में क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी व मगही हटाने का राज्य सरकार का फैसला बोकारो और धनबाद जिले आदिवासी एवं मूलवासियो के भारी जन आंदोलन का नतीजा है। इसी प्रकार राज्य सरकार जन आंदोलन का इंतजार किए बगैर अन्य जिलों में भी क्षेत्रीय भाषा की सूची से भोजपुरी, मगही, अंगिका एवं मैथिली को हटाने का फैसला ले। उन्होंने कहा कि बोकारो व धनबाद के लोगों के मुखर होकर सड़क पर निकल कर व्यापक रूप से विरोध करने पर राज्य सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा है। यह बात हम सबको याद रखना चाहिए। राज्य सरकार जिस प्रकार से बोकारो व धनबाद जिले में भोजपुरी व मगही को क्षेत्रीय भाषा की सूची में शामिल कर इन दोनों जिलों के लोगों का अनादर करने का मंशा पाल रखी थी, का करारा जवाब इन दोनों जिलों के आदिवासी व मूलवासियों ने व्यापक रूप से विरोध कर दिया है। लेकिन इसका श्रेय वैसे मंत्री ले रहे हैं जिन्होंने कैबिनेट में इसका समर्थन किया था।
उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस बात को समझ ले कि सबसे पहले झारखंड पर झारखंड के आदिवासी व मूलवासी का अधिकार है। यहां की रोजगार, भाषा संस्कृति पर यहां के लोगों को ही मौका मिलना चाहिए। झारखंड की सभी नौ जनजाति व क्षेत्रीय भाषाओं को ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार में शामिल लोगों को भी राष्ट्रीय भाषा और क्षेत्रीय भाषा की अंतर समझ नहीं आता है। उर्दू जब राष्ट्रीय भाषा है तो क्षेत्रीय भाषा की सूची में उर्दू को क्यों शामिल किया गया है। झारखंडियों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए सजग रहने की जरूरत है। झारखंडी जन भावना से खिलवाड़ और युवाओं की उपेक्षा होने नहीं देंगे और यह बात सरकार में शामिल लोग सुन और समझ ले। उन्होंने कहा कि कहा कि झारखंड की पहचान 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय एवं नियोजन नीति परिभाषित की जानी चाहिए। सामाजिक न्याय के तहत पिछड़ों को आबादी के अनुसार आरक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए और जातीय जनगणना कराया जाना भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि इन्हीं विषयों को लेकर 7 मार्च को आजसू पार्टी का विधान सभा घेराव प्रस्तावित है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को देश के अन्य राज्यों की तरह यहां भी अपने खर्च पर जातीय जनगणना कराना चाहिए। झारखंड की अस्मिता और पहचान को बरकरार रखा जा सकता है। इस पर राज्य सरकार को तुरंत पहल करना चाहिए। ऐसा होने पर ही झारखंड गठन का उद्देश्य पूरा हो सकेगा। उन्होंने कहा कि राज्य के शिक्षा मंत्री के कथनी व करनी में भारी अंतर है। जिस दिन कैबिनेट की बैठक होती है उसी दिन शिक्षा मंत्री के विभाग से जेटेट से संबंधित प्रस्ताव आता है। इस प्रस्ताव में कहा जाता है भोजपुरी व मगही शामिल रहेगा और प्रस्ताव पास हो जाता है। शिक्षा मंत्री राज्य की जनता को दिग्भ्रमित करना छोड़े।

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