रांची। झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन सदन में सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि 1932 की खतियान आधारित स्थानीय नीति को मजबूत करने के लिए इसे दसवीं अनुसूची में शामिल करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष भी इसे केंद्र को भेजने के लिए राज्यपाल से आग्रह करें। सीएम ने कहा कि हाईकोर्ट से नियोजन नीति रद्द की गई है। पहली बार नियोजन नीति रद्द नहीं हुई है। तीसरी बार राज्य में बने नियोजन नीति को निरस्त किया गया है। उन्होंने कहा कि विपक्ष के प्रदेश अध्यक्ष कह रहे हैं कि हमने रघुवर सरकार में बनाये गये नियोजन नीति को रद्द करवाया था, जबकि यह सरासर गलत है। राज्य में तीन-तीन बार कार्यपालिका से नीति बनी और हाईकोर्ट से खारिज हो गया। यह दुर्भाग्य की बात है। हमारी बनायी नीतियों को खारिज करवाने के लिए एक आदिवासी युवा को कंप्लेंट बनाकर आगे कर दिया जाता है। फिर उसके पीछे 19 पेटीशनर आते हैं। ये सब के सब बाहरी होते हैं, क्योंकि स्थानीय नीति से तकलीफ बाहरियों को होता है। इसलिए अगर स्थानीय और नियोजन नीति को और मजबूत करना है तो हमें राज्य की भावना के साथ आगे बढ़ना होगा। हम सभी राज्यपाल से आग्रह करें कि जो नीति बनाई गई है उसे केंद्र को भेजें। सीएम हेमंत सोरेन ने कहा कि अध्यक्ष महोदय विपक्ष बात नहीं सुन रहा है। दूसरे दिन जब 12:55 पर विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायक वेल में आ गये। सत्ता पक्ष के विधायक लोकसभा में हेमंत सोरेन के खिलाफ दिए गए निशिकांत दुबे के बयान का विरोध कर रहे थे।
सीएम पर आपत्तिजनक टिप्पणी पर सरकार ने कि कड़ी निंदा
मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के संदर्भ में लोकसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान झारखंड के एक सांसद द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणी पर राज्य सरकार ने कड़ी निंदा और नाराजगी व्यक्त की है। हालांकि इन टिप्पणियों को संसदीय रिकॉर्ड से हटा दिया गया। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में निर्वाचित जन प्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि वे राजनीतिक मतभेदों के बावजूद विचार-विमर्श और संवाद में शब्दों की गरिमा को बनाए रखें। उक्त सांसद द्वारा उपयोग किए गए आपत्तिजनक शब्द एक सांसद से अपेक्षित नहीं है।