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महाशिवरात्रि आज: 24 घंटे में पूजा के 7 मुहूर्त; 5 आसान स्टेप्स में शिव पूजन, मंत्र और आरती , 6 राजयोग में मनेगा शिव पर्व

by Gandiv Live
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सुबह : 6.05 से 8:55 तक

सुबह : 9:40 से दोपहर 2 बजे तक

दोपहर : 3:30 से शाम 5 बजे तक

आज शिव पूजा का महापर्व यानी शिवरात्रि है। शिव पुराण में लिखा है कि महाशिवरात्रि पर शिवलिंग से ही सृष्टि शुरू हुई थी। इस दिन सबसे पहले भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने शिवलिंग की पूजा की थी। तब से हर युग में इस तिथि पर भगवान शिव की महापूजा और व्रत-उपवास करने की परंपरा चली आ रही है। इस पर्व पर दिनभर तो शिव पूजा होती ही है, लेकिन ग्रंथों में रात में पूजा करने का खास महत्व बताया गया है। इस पर्व से जुड़ी मान्यता ये भी है कि इस दिन भगवान शिव-पार्वती का विवाह हुआ था।

रात के चार प्रहर की पूजा के मुहूर्त

पहला प्रहर : शाम 6:25 से रात 9:31 तक

दूसरा प्रहार : रात 9:31 से 12:37 तक

तीसरा प्रहर :12:37 से 3: 43 तक

चौथा प्रहार : 3:43 से अगले दिन सुबह 6 :49 तक

दुर्लभ ग्रह स्थिति और 6 दुर्लभ योगों का संयोग
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि महाशिवरात्रि पर शिव योग बन रहा है। साथ ही शंख, पर्वत, हर्ष, दीर्घायु और भाग्य नाम के राजयोग बन रहे हैं। इस दिन मकर राशि में चंद्र, मंगल, बुध, शुक्र और शनि रहेंगे। इन ग्रहों के एक राशि में होने से पंचग्रही योग बन रहा है। वहीं, इस महा पर्व पर कुंभ राशि में सूर्य और गुरु की युति बनना भी शुभ रहेगा। बृहस्पति धर्म-कर्म और सूर्य आत्मा कारक ग्रह होता है। इन दोनों ग्रहों की युति में शिव पूजा का शुभ फल और बढ़ जाएगा। शिवरात्रि पर सितारों की ऐसी स्थिति पिछले कई सालों में नहीं बनी।

महाशिवरात्रि पर्व पर कैसे करें पूजन जाने विधि विधान1. मिट्टी के लोटे में पानी या दूध भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के फूल, चावल आदि डालकर ‘शिवलिंग’ पर चढ़ाना चाहिए। अगर आस-पास कोई शिव मंदिर नहीं है, तो घर में ही मिट्टी का शिवलिंग बनाकर उनका पूजन किया जाना चाहिए।

2. शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप इस दिन करना चाहिए। साथ ही महाशिवरात्री के दिन रात्रि जागरण का भी विधान है।3. शास्त्रीय विधि-विधान के अनुसार शिवरात्रि का पूजन ‘निशीथ काल’ में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि भक्त रात्रि के चारों प्रहरों में से अपनी सुविधानुसार यह पूजन कर सकते हैं।ज्योतिषाचार्य पंडित अतुल शास्त्री जी के अनुसार शास्त्रों तथा ज्योतिष के दृष्टिकोण से महाशिवरात्रि पर्व:चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ अर्थात स्वयं शिव ही हैं। इसलिए प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि के तौर पर मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्रों में इस तिथि को अत्यंत शुभ बताया गया है। गणित ज्योतिष के आंकलन के हिसाब से महाशिवरात्रि के समय सूर्य उत्तरायण हो चुके होते हैं और ऋतु-परिवर्तन भी चल रहा होता है। ज्योतिष के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चंद्रमा अपनी कमज़ोर स्थिति में आ जाते हैं। चन्द्रमा को शिव जी ने मस्तक पर धारण किया हुआ है — अतः शिवजी के पूजन से व्यक्ति का चंद्र सबल होता है, जो मन का कारक है।दूसरे शब्दों में कहें तो शिव की आराधना इच्छा-शक्ति को मज़बूत करती है और अन्तःकरण में अदम्य साहस व दृढ़ता का संचार करती है।

भगवान शिव की पूजा के छः तत्व, ऐसे करें पूजनमहाशिवारात्रि की पूजा के छ: महत्वपूर्ण तत्व हैं जिनका उपयोग महाशिवरात्रि पूजन के दौरान निश्चित तौर पर किया जाना चाहिए। गौरतलब है कि प्रत्येक एक विशेष अर्थ का प्रतीक है।

1) शिवलिंग का जल और दूध से स्नान और बेल के पत्तों से आत्मा की शुद्धि होती है

2) स्नान के बाद सिंदूर पुण्य का प्रतीक है।

3) पूजा करते समय चढ़ाए गए फल इच्छाओं और दीर्घायु की पूर्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

4) अगरबत्ती जलाना धन का प्रतीक है।

5) पान का पत्ता सांसारिक इच्छाओं से संतुष्टि दर्शाते हैं।

6) दीपक को जलाना ज्ञान और बुद्धिमानी की प्राप्ति का प्रतीक है।

पूजा के मंत्र

1. ॐ नम: शिवाय
2. ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधिम् पुष्टिवर्द्धनम्।
ऊर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षिय मामृतात्।। ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ

व्रत कैसे करें
शिवरात्रि पर सूर्योदय से पहले उठकर पानी में गंगाजल और काले तिल मिलाकर नहाएं। इसके बाद दिनभर व्रत और शिव पूजा करने का संकल्प लें। व्रत या उपवास में अन्न नहीं खाना चाहिए। पुराणों में जिक्र है कि पूरे दिन पानी भी नहीं पीना चाहिए। जानकारों का कहना है कि इतना कठिन व्रत न कर सकें तो फल, दूध और पानी पी सकते हैं। इस व्रत में सुबह-शाम नहाने के बाद शिव मंदिर दर्शन के लिए जाना चाहिए।

भगवन शिव जी की आरती

कर्पूरगौरं करुणावतारं,
संसारसारं भुजगेन्द्रहारं,
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे,
भव भवानी सहितं नमामि।

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा,
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा।।
ॐ जय शिव ओंकारा

एकानन चतुरानन पंचांनन राजे,
हंसासंन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे।।
ॐ जय शिव ओंकारा

दो भुज चारु चतुर्भज दसभुज अति सोहें,
तीनों रुप निरखता त्रिभुवन जन मोहें।।
ॐ जय शिव ओंकारा

अक्षमाला, बनमाला, रुण्ड़मालाधारी,
चंदन, मृदमग सोहें, भाले शशिधारी।।
ॐ जय शिव ओंकारा

श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगें,
सनकादिक, ब्रम्हादिक, भूतादिक संगें।।
ॐ जय शिव ओंकारा

कर के मध्य कमड़ंल चक्र त्रिशूल धरता,
जगकर्ता, जगभर्ता, जगसंहारकर्ता।।
ॐ जय शिव ओंकारा

ब्रम्हा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका,
प्रवणाक्षर मध्यें ये तीनों एका।।
ॐ जय शिव ओंकारा

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रम्हचारी,
नित उठी भोग लगावत महिमा अति भारी।।
ॐ जय शिव ओंकारा

त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई नर गावें,
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावें।।
ॐ जय शिव ओंकारा..

जय शिव ओंकारा हर ॐ शिव ओंकारा,
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अद्धांगी धारा।।
ॐ जय शिव ओंकारा
भगवान शिव जी की आरती,

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