करोड़ों के पेड़ काटे गए, निदेशक का कहना है अनुमति आवश्यक नहीं, डीएफओ का जानकारी नहीं
सुनील बादल, वरिष्ठ पत्रकार
रांची। पर्यावरणविद एक भी विकसित पेड़ को काटने के विरुद्ध आंदोलन करते रहे हैं। लेकिन मौजूदा कानूनों की कमियों का हवाला देकर ललगुटुवा में केंद्र सरकार द्वारा संचालित वन उत्पादकता संस्थान (आईएफपी) के परिसर भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) के वन उत्पादकता अनुसंधान केंद्र में लगभग 16 साल पुराने 300 गम्हार पेड़ काट दिए गए। गम्हार (गमेलिना अर्बोरिया) एक तेजी से बढ़ने वाला पर्णपाती पेड़ है। जो पूरे देश में पाया जाता है और इसकी लकड़ी अच्छे कीमत के लिए जानी जाती है। लेटराइट मिट्टी पर वृक्ष प्रजातियों के विकास का अध्ययन करने के लिए 2005-06 में आईएफपी के परिसर में पेड़ लगाया गया था। वन विभाग की अनुमति के बिना पिछले साल दिसंबर में सभी पेड़ों को काट दिए गए। संस्थान के निदेशक डॉ नितिन कुलकर्णी ने स्वीकार किया है कि पेड़ काटे गए हैं। हालांकि, उन्होंने कहा, हमें किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे किसी वृक्षारोपण का हिस्सा नहीं थे। वे हमारे शोध प्लॉट पर थे और जब तक यह साफ नहीं हो जाता कि हम अन्य शोध परियोजनाओं के लिए आवश्यकता पड़ने पर नई किस्में कहां लगाएंगे। गत वर्ष फरवरी में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पांच सदस्यीय कमेटी ने पेड़ के वास्तविक मूल्य की गणना पेड़ की शेष जीवन अवधि को 74,500 रुपये से गुणा करके की थी। कमेटी का मानना था कि इसका आकलन उन लाभों को ध्यान में रखते हुए किया था। जो यह एक पेड़ प्रकृति और मानव जाति को मिलने वाला आॅक्सीजन भी शामिल है। पेड़ों की सामान्य जीवन अवधि 50 वर्ष को ध्यान मेंं रखकर संस्थान परिसर में काटे गए 300 पेड़ों का मूल्य 1,11.75 करोड़ रुपये होना चाहिए।
पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए बहुत बड़ी क्षति : पीसीसीएफ
प्रधान मुख्य वन संरक्षक पीके वर्मा ने मानते हैं कि कि पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिए बहुत बड़ी क्षति है। लेकिन यह अवैध है या नहीं, मौजूदा कानूनों के आधार पर पता लगाया जा सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि झारखंड में पेड़ों की सुरक्षा के लिए कोई नियम नहीं है।
पेड़ों के काटे जाने की कोई जानकारी नहीं : डीएफओ
डीएफओ रांची अशोक दुबे ने कहा कि पेड़ों के काटे जाने की उन्हें कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि वन विभाग द्वारा जारी एक ट्रांजिट परमिट केवल उन्हें कहीं ले जाने के लिए आवश्यक है। और जब तक वे पेड़ के तने को कहीं और नहीं ले जाते हैं। तो कानून का उल्लंघन नहीं होता है। आजतक सामान्य लोगों को यह पता था कि अपने पेड़ों को काटने के लिए भी वन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना पड़ता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और पर्यावरण संरक्षक इस पर क्या सोचते हैं।